गोकुल गांव को पेंडोहि न्यारों

गोकुल गांव को पेंडोहि न्यारों

नमस्कार दोस्तों मेरे ज्ञान और मनोरंजन से भरपूर इस पोस्ट पर आपका स्वागत है मैंने आपके मनोरंजन और बौद्धिक विकास को ध्यान में रखते हुए यह उद्धरण लिखा है आशा करता हूं कि आपको पसंद आएगा आइए जानते हैं एक प्रेम का नशा जब व्यक्ति को चढ़ता है तो उसकी क्या दशा होती है इस छोटी सी मगर अर्थ पूर्ण ज्ञानवर्धक चुटकुले के माध्यम से समझते हैं एक बार एक महात्मा जी भांग पीने का नशा करते थे एक बार मथुरा से गोकुल जाने के लिए नाव में बैठे और नाव की पतवार को रस्सी से खोले बिना ही नाव में बैठकर तेरेनी को चलाते हुए उस भांग के नशे में बस एक ही शब्द की रट लगाए हुए है कि “अभी गोकुल जाता हूं ,अभी गोकुल जाता हूं, अभी गोकुल जाता हूं” जब महात्मा जी की भांग का नशा उतरता है तो महात्मा जी देखते हैं कि अभी तक वहीं अटके हुए हैं एक भी इंश नहीं हिलेे है बस प्रेम का नशा भी कुछ इस तरह का होता है कि अपने प्रियतम से मिलने की तड़प में खोया हुआ रहता है तभी मीराबाई जी ने भी कहा है:-

जो मैं ऐडो जानती की प्रीत किया दुख होय।
नगर ढिंढोरो पिटती की प्रीत मत करियो कोई।।

जब हमें किसी से प्रेम हो जाता है तब हमारी मनोदशा ऐसी हो जाती है कि उसके बिना एक पल भी रहना हमारे लिए बड़ा मुश्किल हो जाता है शुद्ध प्रेम के कुछ उदाहरण आपके सामने रख रहा हूं भक्ति मार्ग में मीराबाई को कृष्ण भगवान से जब प्रेम हुआ तो उनकी अंतर्दशा कुछ ऐसी हो गई कि उन्होंने इस संसार को यह तक कह दिया कि भाई आप कभी किसी से प्रेम मत करना क्योंकि प्रेम मार्ग में विरह का इतना दर्द झेलना पड़ता है कि इस संसार में जीना मुश्किल हो जाता है ऐसा ही एक उदाहरण दादूपंथी सुंदर दास जी महाराज ने अपनी रचनाओं में किया है आइए जानते हैं।

एक अखंडित ज्यों नभ व्यापक बाहर भीतर है इक्सारो।
दृष्टक मुष्टक रूप न रेखा श्वेत न पित न रक्त न कारों।
चक्रित होए रहे अनुभव बिन जहां लग नहीं ज्ञान उजियारों।
सुंदर कौउक् जानी सके यह गोकुल गांव को पेंडो ही न्यारो।।

प्रेमी की दशा का वर्णन कर पाना बड़ा ही कठिन कार्य है प्रेमी को उस एक के अतिरिक्त जिससे वह प्रेम करता है उसके अतिरिक्त कुछ भी नजर नहीं आता कहते हैं कि जिस प्रकार आसमान सब जगह व्यापक है उसी प्रकार उसे बाहर भीतर बस वही नजर आता है आंखें बंद करें तो वह आंखें खोले तो वह उस प्रेम की ने कोई रूपरेखा दिखती है ना ही उसे कोई रंग दिखता है काला पीला लाल सफेद हरा व्यक्ति को यह सब बातें तब तक असमंजस में रखती है जब तक कि वह खुद उस मार्ग से कभी गुजरा ना हो वह अनुभव नहीं किया हो उसके हृदय में जब तक प्रेम मार्ग के ज्ञान का प्रकाश नहीं हो जाता सुंदर दास जी महाराज कहते हैं कि ऐसी प्रेम के मार्ग को विरले ही जान पाते।

प्रीत की रीत कछु नहीं जानत जात न पात नहीं कुल गारो।
प्रेम कु नेम कऊं नहीं दीसत लोक न लाज लग्यो सब खारो।
लीन भयो हरि सो अभीअंतर आठों हूं याम रहे मतवारो।
सुंदर कौऊ क जानी सके यह गोकुल गांव को पेंडो ही न्यारो।।

इस सवैये के माध्यम से सुंदर दास जी महाराज कहते हैं की प्रेम करने की कोई विधि विशेष कुछ नहीं है ना ही इसमें जात पात या कुल का कोई बंधन है क्योंकि प्रेम का आज तक कोई कानून या नियम विशेष नहीं देखा प्रेम करने वाले व्यक्ति को यह लोक लाज सब कड़वा लगता है क्योंकि वह उसके लिए उसके प्रेम मार्ग में बाधा उत्पन्न करता है वह तो सिर्फ अपने प्रियतम के ध्यान में उसके प्रेम में आंठो पहर दिन रात उस में लीन रहता है और उसमें मस्त रहता है सुंदर दास जी महाराज आगे और लिखते हैं। gokul anand

द्वंद्व बिना बिसरे वसुधा परी जहां घट आतम ज्ञान अपारो।
योग न भोग न त्याग न संग्रह देह दशा न ढक्यों न उगाडो।
काम न क्रोध न लोभ न मोह राग न द्वेष न मारो न थारो।
सुंदर कोउक जानी सके यह गोकुल गांव को पेंडो ही न्यारो।।

सुंदर दास जी महाराज छंद के माध्यम से प्रेमी की दशा और दिशा का वर्णन करते हैं कि जिनको संसार के सारे द्वंद्व प्रपंचों को छोड़कर अपने प्रियतम के प्रेम में लीन होकर इस संसार में विचरण कर रहे हैं उनको तो मानो अपना आत्मज्ञान हो गया स्वयं की अनुभूति हो गई है ऐसे प्रेम मार्गी को योग या भोग में भी समानता दिखती है त्याग या संग्रह की जरूरत नहीं रहती अपने शरीर की दशा का भी ध्यान नहीं है कि ढका हुआ है या नंगा इस संसार के बंधन काम क्रोध लोभ मोह राग द्वेष अपना पराया कुछ भी नहीं रहता निर्द्वंद्व होकर प्रभु प्रेम में बिचरते रहते हैं। gokul anand

लक्ष्य अलक्ष न दक्ष अदक्ष न पक्ष अपक्ष न तूल न भारो।
झूठ न साच अवास न वास कंचन काच न दीन उद्दारो।
जान अजान न मान अमान न शान गुमान न जीत न हारो।
सुंदर कौउक् जानी सके यह गोकुल गांव को पैन्डो ही न्यारों।।

प्रेम की विरह अग्नि में जल रहे प्रेमी के लिए ना ही ऐसा है कि उसे कुछ पाना शेष है ना ही ऐसा है कि पा लिया इस मार्ग में कोई दक्षता की भी जरूरत नहीं है ना ही ऐसा है कि अपने प्रियतम के बारे में कुछ मालूम भी ना हो अनभिज्ञ हो इस मार्ग में किसी का पक्ष या विपक्ष नहीं होता नहीं यह सुक्ष्म है तो ना ही भारी झूठ और सच के बीच में चलना है संसार की आसक्ति में नहीं रहना यह नहीं है कि यह अच्छा है और यह भी नहीं है कि बुरा है बैराग हो जाता है उसके लिए सोना और पत्थर एक समान है उसकी नजर में ना कोई गरीब है तो ना ही कोई अमीर है उसके लिए इस संसार को जानना या नहीं जानना बराबर है उसे मान सम्मान की चिंता नहीं क्योंकि उसकी अपनी कोई शान नहीं तो गुमान किस बात का ना उसकी जीत है ना हार क्योंकि उसने अपने आपको प्रभु के प्रेम पूर्ण समर्पित कर दिया है उसे जहां तहां प्रभु ही नजर आते हैं सुंदर दास जी महाराज कहते हैं कि उसका अपना कुछ भी नहीं रह जाता। gokul anand

प्रेम के विषय में संतो ने भिन्न-भिन्न रूप से वर्णन किया है उनमें से कबीर साहिब जी ने जो प्रेम का वर्णन किया है वैसे तो वह अवर्णनीय है लेकिन उनके एक दोहे का यहां पर वर्णन करते हैं:-

 

कबीरा जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सांकरी तामे दो न समाय।।

आशा करता हूं दोस्तों प्रेम का यह उद्धरण आपको जरूर पसंद आया होगा अगर आप जी ऐसा ही कोई सुझाव मुझे देते हो जिस पर मैं कुछ लिखूं तो आपका स्वागत है आप हमें कमेंट करके जरूर बताइएगा अगर दोस्तों यह पोस्ट आपको पसंद आई है तो पोस्ट को अपने मित्रों में शेयर जरूर करें धन्यवाद।🌹🙏🏻 gokul anand

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