Dharm Kya Hai
नमस्कार दोस्तों आज हम धर्म के बारे में संक्षिप्त में जानेंगे कि धर्म का हमारे जीवन में क्या उपयोग है क्या महत्व है और बिना धर्म का व्यक्ति कैसा होता है इन सब के बारे में हम विस्तार से जानेंगे अचल में धर्म ही हमारा सच्चा रक्षक है इसलिए इसे जानना हमारे लिए बहुत जरूरी है वेदों में भी कहा गया है कि “धर्मो रक्षति रक्षिता” इस जीव का सच्चा रक्षक धर्म भी है। dharm kya hai
संक्षिप्त परिचय धर्म क्या है ? dharm kya hai
क्षमा अहिंसा दया मृदुता सत्य वचन तप दान।
शील संतोष तृष्णा बिना धर्म लिंग दशा जान।।
अर्थात:- धर्म के दस लक्षण समस्त जीवो के प्रति क्षमा का भाव क्षमा बुद्धिमान लोगों का गहना है जैसे एक समय भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु के छाती में लात मारी थी फिर भी भगवान विष्णु समर्थ होते हुए भी भृगु ऋषि को क्षमा कर दिया यह है क्षमा का भाव चर अचर संपूर्ण जीवो के प्रति अहिंसा का भाव मन वचन कर्म से किसी की भी हिंसा नहीं करना अहिंसा कहलाता है। संपूर्ण जीवो के प्रति दया का भाव शास्त्र और संतों ने दया को धर्म का मूल का है दया धर्म की जड़ है बिना जड़ के वृक्ष की कोई मजबूती नहीं होती है।
धर्म की जड़ क्या है ? dharm kya hai
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया ना छोड़िए जब लग घट में प्राण।।
संपूर्ण जीवो से मीठी वाणी में बात करनी चाहिए “तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहुं ओर” पांचवा है सत्य वचन जो बोलो जितना बोलो हो सके जितना सच बोलो क्योंकि सत्यमेव जयते सत्य की अंत में विजय होती है और अंत में संसार में सम्मान भी होता है। Dharm Kya Hai
दूसरे के प्रति कैसी भाषा का प्रयोग करें ?
“वाणी ऐसी बोलिए मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय।।”
अपनी समस्त इंद्रियों को कु मार्ग में जाने से रोकना ही तप है। धर्म का सातवां अंग है दान अब कैसे करना चाहिए इस विषय में संतों ने लिखा है कि:- Dharm Kya Hai
दान करें लेकिन कैसे ?
ज्यों इक वापी तोय ईख संग मिली मधुर अति।
कटुता नीम समोय भोजन पात्र अपात्र त्यों।।
जिस प्रकार बाल्टी का पानी तो एक है लेकिन वही पानी अगर एक गन्ने में डाल दिया जाए तो मीठा हो जाता है और नीम के अंदर डाल दिया जाए तो वहीं पानी कड़वा बन जाएगा ठीक उसी प्रकार दान वही सही है दान ऐसी जगह देना चाहिए जिस जगह से हमारे दान का प्रतिफल अच्छा मिले। Dharm Kya Hai
फलीभूत दानम शुभम पात्र दियो यथा बीज बूयो सु क्षेत्रे अखैयो।
कूपात्रे मंझारी दियो दान ऐसे कुक्षेत्रे मंझारी बुयो बीज जैसे।।
जिस प्रकार अच्छी तरह सवारे हुए खेत में बीज बोने से फसल अच्छी मिलती है और बिना सवरे खेत में बीज बोने से फसल अच्छी नहीं मिलेगी इसी प्रकार अच्छे सुपात्र और अधिकारी व्यक्ति या जगह पर दान देने से दान का महत्व बढ़ जाता है सुपात्र व्यक्ति को दान देना चाहिए।
धर्म का आठवां अंग है शील शील का अर्थ होता है व्यक्ति को बाहर और भीतर दोनों और से पवित्र रहना चाहिए। धर्म का नवा अंग है संतोष जो बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है वैसे तो हर एक अंग अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण है व्यक्ति के भीतर जब तक संतोष नहीं आ जाता तब तक उसे कितना भी कुछ मिल जाए तृप्ति नहीं होती चाहे उसके पास तीनों लोको का राज्य प्राप्त हो जाए फिर भी अगर संतोष रूपी धन नहीं है पास में तो सब कुछ व्यर्थ है। धर्म का दसवां और अंतिम अंग है तृष्णा का अभाव इस प्रकार यह धर्म के 10 लक्षण कहे गए हैं इन दश लक्षणों से मिलकर ही धर्म बनता है व्यक्ति को ऐसे धर्म को धारण करना चाहिए। Dharm Kya Hai
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धर्म की निजता क्या है ?
उपजै धर्म वाक्य सत्य करी अति दया दान करी धर्म वधे अति।
स्थिति धर्म क्षमा के संगा धर्म क्रोध करी होत विभंगा।।
सत्य से धर्म की उत्पत्ति होती है दया और दान करने से धर्म में बढ़ोतरी होती है भीतर क्षमा के भाव होने से धर्म स्थिर रहता है और क्रोध करने से धर्म का नाश होता है।
धर्म धारण करने से क्या फल मिलता है
शुभ कुल जन्म सुरूप तनु भूप भोग अपत्य।
पंडित देह अरोग पुनि धर्म जान फल सत्य।।
उत्तम कुल में जन्म सुंदर रूप उत्तम भोजन का आहार पंडितों जैसी कोमल देह एवं निरोगीता यह सब धर्म के ही फल है। Dharm Kya Hai
धार्मिकता का क्या लक्षण है ?
धर्म प्रीति नित वेद विचारे उत्तम दान स्वभाव जु धारे।
इंद्रिय अर्थ विरागहि मन जीहि जिहि इह प्राप्ति सफल जन्म तिहि।।
उसी पुरुष का जन्म लेना सार्थक है जिसका धर्म के प्रति अनुराग हो वेद चिंतन करना दान करने का तो मानो व्यसन हो एवं इंद्रियों के विषयों में अनासक्ति का होना।
धर्म विहीन व्यक्ति कैसा लगता है
इंदु बिना ज्यों मंद निशी मंद कंज बिन ताल।
जीव मंद त्यों धर्म बिन ताते धर्म न टाल।।
जिस प्रकार चंद्रमा के ना होने पर रात्रि की एवं कमलो के ना होने पर सरोवर की शोभा नहीं होती उसी प्रकार धर्म के न होने पर जीव की सर्वता शोभा नहीं होती। Dharm Kya Hai
सम संतोष न और सुख तप न क्षमा सम जान।
ब्रह्म ज्ञान सम दान नहीं धर्म न दया समान।।
इस संसार में संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं क्षमा से बढ़कर कोई तप नहीं विद्यादान से बढ़कर कोई दान नहीं एवं दया से बढ़कर कोई धर्म नहीं। Dharm Kya Hai
चारों फल में एक भी उपजे हृदय न जासु।
अजागले के कुंचनी ज्यों जन्म व्यर्थ है तासू।।
धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चारों फलों में से एक भी जिस मनुष्य के पास नहीं है उसका जन्म लेना मानो बकरी के कंठ में लटकते हुए कुंचो की भांति निरर्थक है।
धर्म पारस के समान है dharm kya hai
धर्म परम पारस अहे जो दायक फल चार।
ताते ज्यों त्यों धर्म को धरे जु बुद्धि उद्धार।।
धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चार फलों में से धर्म जो है वह परम पारस है जिस प्रकार पारस लोहे को सोना बना देता है उसी प्रकार धर्म व्यक्ति के जीवन को सोना बना देता है इसलिए बुद्धिमान उदार चित व्यक्ति को धर्म को धारण करना चाहिए। Dharm Kya Hai
धर्म की व्यक्ति के जीवन में कितनी उपयोगिता है
नाग शौभे मदकर निर शोभे इंदीवर रेन शोभे हिमकर नारी शील रति ते।
शोभे तुरंग जव धाम शोभे उत्सव शोभे व्याकरण रव नदी हंस गति ते।
सभा शोभे विद्वान कुल शोभे शुसंतान पानी शोभे करे दान क्षिती क्षिति पति ते।
मूढ़ शोभे करें मौन सीखी शोभे होन शोभे अतिशय त्रीभौन धर्मी सुमति ते।।
मदजल से हाथी, कमलों से जल सरोवर, पूर्णिमा के चंद्रमा से रात्रि, शील स्वभाव से स्त्रियां, तीव्र गमन से घोड़े, नित्य प्रति के उत्सवों द्वारा मंदिर, व्याकरण द्वारा वाणी, हंस के जोड़ों से नदियां, पंडितों एवं विद्वानों द्वारा सभाएं, सुपुत्र द्वारा कुल, दान करने पर हाथों की, नीतिज्ञ राजा से पृथ्वी की, एवं धर्मात्मा पुरुषों द्वारा तीनो लोक शोभायमान होते हैं। Dharm Kya Hai
हर स्थिति में धर्म को धारण करना चाहिए
सुखी दुखी नर जगत में धर्म करे सब कोय।
सुखी करे तब सुख बढ़े दुखी करे दुख खोय।।
इस संसार में सुखी कीवा दुखी दोनों प्रकार के पुरुषों को धर्म करते रहना चाहिए सुखी पुरुष के धर्म करने से सुख बढ़ता है एवं दुखी के धर्म करने से दुख का नाश होता है। Dharm Kya Hai
धरम वधाया धन वधे धन वध मन वध जाय।
मन वधिया महमा वधे वधत वधत वध जाय।।
धर्म घटाया धन घटे धन घट मन घट जाए।
मन घटिया महिमा घटे घटत घटत घट जाए।।
धर्म के बढ़ने पर धन बढ़ता है धन के बढ़ने से मन प्रफुल्लित रहता है मन के प्रसन्न रहने से महिमा बढ़ती है और फिर बढ़ते ही जाती है लेकिन धर्म को घटाने से यह सब उल्टा होने लगता है इसलिए व्यक्ति को हमेशा धर्म को बढ़ाते रहना चाहिए जिससे हमारा यह इहलोक और परलोक दोनों सवर जाए। Dharm Kya Hai
धर्म तरु धीरू वधे बड़ पीपल विस्तार।
आक अरंड धतूरा ए वदत ना लावे वार।।
आक अरण्ड और धतूरा भले ही जल्दी बढ़ जाते हो लेकिन इनकी जड़ें ऊपर होती है और नष्ट भी जल्दी ही हो जाते हैं धर्म उस बड़ और पीपल की तरह होता है जो भले ही बढ़ने में वक्त लगता हो लेकिन इनकी जड़ें बड़ी मजबूत होती है तो धर्म उसी प्रकार बड़ और पीपल की तरह जानो।
मुझे उम्मीद है दोस्तों की धर्म के ऊपर मेरा यह विवेचन आपको जरूर पसंद आया होगा अगर आपको यह धर्म के उपलक्ष में प्रतिपादित जानकारी पसन्द आई हो तो अपने दोस्तों को भी शेयर करें धन्यवाद। और भी निम्न प्रकार की जानकारी के लिए क्लिक करें ।। Dharm Kya Hai
Waw
bohut Sundar
very nice
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Impressive