Atma Bodha

अतः जिज्ञास बोध जीव के तीन शरीर पंचकोश तीन अवस्था देश काल वस्तु धर्म वाच्य स्वरूप तथा लक्ष्य स्वरूप का निर्णय होता है। atma bodha
तीन शरीर निर्णय
स्थूल शरीर लिंग (सुक्ष्म) शरीर कारण शरीर।
स्थूल शरीर निर्णय
पांच तत्व:- आकाश वायु तेज जल पृथ्वी
आकाश की प्रकृति:- काम क्रोध शोक मोह और भय
वायु की प्रकृति:- चलन वलन धावन प्रसारण और आकुंचन
तेज की प्रकृति:- सुधा तृष्णा आलस निद्रा और कांति
जल की प्रकृति:- वीर्य रक्त लार मूत्र पसीना
पृथ्वी की प्रकृति:- हाड मास नाड़ी त्वचा और रोम
इन पांच तत्व और 25 प्रकृति का स्थूल शरीर कहिए।
Atma Bodha
स्थूल शरीर के धर्म
चार वर्ण:- क्षत्रिय ब्राह्मण वैश्य शूद्र
चार आश्रम:- ब्रह्मचर्य गृहस्थ वानप्रस्थ सन्यास
चार संबंध:- स्त्री पुरुष का पिता पुत्र का स्वामी सेवक का और गुरु शिष्य का
षट आकार:- लंबा छोटा जाडा पतला टेढ़ा और सीधा
षट विकार:- जन्मे है जन्म्यों है बालक होए हैं जवान होए हैं वृद्ध होए हैं और मरे हैं
नाम:- मोहन माधव राम कृष्ण आदि
रूप:- काला हरा लाल श्वेत पीला
यह स्थूल शरीर के धर्म कहिए। Atma Bodha
अतः लिंग शरीर निर्णय
पंच ज्ञान इंद्रियां:- श्रवण त्वचा नेत्र जीव्या और घ्राण
पांच कर्मेंद्रियां:- वाक पानी पाद उपस्थ गुदा
पंचप्राण:- व्यान समान उदान प्राण और अपान
दो अंतःकरण मन और बुद्धि यह 17 तत्वों का लिंग शरीर कहिए।
लिंग शरीर के धर्म
पुण्य पाप का करतापना पुण्य पाप का फल सुख दुख का भौगतापना स्वर्ग मृत्युलोक में गमनागमन पना इत्यादि यह लिंग शरीर के धर्म कहिए।
कारण शरीर निर्णय Atma Bodha
अपने आप सच्चिदानंद आत्म स्वरूप को नहीं जानने मात्र अज्ञान का नाम ही कारण शरीर कहिए।
कारण शरीर के धर्म
अपने आप सच्चिदानंद आत्मस्वरूप को ढकना ही इस अज्ञान का धर्म है जो यह अज्ञानी कहता है कि “अहम न जानामि” यानी में मुझ को नहीं जानता हूं यह कारण शरीर का धर्म कहिए इति तीन शरीर विवेक समाप्त।
अतः पंचकोश निर्णय:-
अनमयकोष, प्राणमय कोश, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष, आनंदमय कोष।
अन्नमय कोष निर्णय
माता पिता ने खाया अन तिस से उत्पन्न भया माता का रज और पिता का वीर्य सो रज और वीर्य दोनों मिलकर के उत्पन्न भया यह स्थूल शरीर यह स्थूल शरीर की अन करके उत्पत्ति अन करके स्थिति और अन में पृथ्वी विषय लय देखने से इस स्थूल शरीर को अनमय कोष कहिए।
प्राणमय कोष निर्णय
पांच प्राण:- व्यान, समान, उदान, प्राण और अपान
पांच उपप्राण:- नाग, कुर्म, कृकल, देवदत और धनंजय
व्यान वायु का निर्णय
जो सर्व शरीर में व्याप कर सारे शरीर के संध्यो को चलाने मात्र क्रिया को करावे ताकू नाम व्यान वायु कहिए।
समान वायु का निर्णय
नाभि स्थान में रहकर के खाए पिए अन जल के रस को नाडियों द्वारा माली की नाई जैसे अन के तीन भाग होते हैं उत्तम मध्यम और कनिष्ठ तिन में उत्तम तो वीर्य है मध्यम लोहू है कनिष्ठ मल मूत्र है तिन में वीर्य को शिश में चढ़ावे लोहू को नाड़ियों में पहुंचावे तथा मल मूत्र को नीचे गुदा आदि द्वार में पहुंचावे ताको समान वायु कहिए।
उदान वायु निर्णय
कंठ स्थान में रह करके खाए पिए अन जल के रस को विभाग कराना तथा हिचकी लेने रूप क्रिया को कराना ताको नाम उदान वायु कहिए
प्राणवायु निर्णय
जो रात और दिन के बीच 21600 श्वास प्रश्वास लेने रूप क्रिया को करावे ताको नाम प्राणवायु कहिए
अपान वायु निर्णय
गुदाद्वार में रह कर के भंगी की नाई मल त्याग को कराना तथा मल स्थान को साफ कराने रूप क्रिया को करावे ताको नाम अपान वायु कहिए
पंच उप प्राण निर्णय
हरदे स्थान में रहकर के उद्गार लेने रूप क्रिया को करावे ताकू नाम नाग वायूं कहिए
नेत्र स्थान में रहकर के नेत्रों के पलकों को उघाड़ने मिचने रूप क्रिया को करावे ताकू नाम कुर्म वायु कहिए
नासिका स्थान में रह करके छींक लेने रूप क्रिया को करावे ताको नाम कृकल वायु कहिए
तालु स्थान में रहकर के जम्हाई लेने रूप क्रिया को करावे ताकु नाम देवदत्त वायु कहिए
शरीर में रहकर के स्थूल शरीर को जीवित काल में हष्ट पुष्ट करे तथा मरने के पश्चात फुलावे ताकू नाम धनंजय वायु कहिए इति प्राणमय कोष विवेक समाप्त।
मनोमय कोष निर्णय
मन और पंच कर्म इंद्रियां मिलकर के मनोमय कोष कहिए
विज्ञान में कोष निर्णय
बुद्धि और पंच ज्ञानेंद्रियां मिलकर के विज्ञानमय कोष कहिए
आनंदमय कोष निर्णय
सुषुप्ति गत आनंद को आनंदमय कोष कहते हैं अथवा प्रिय, मोद,अरु प्रमोद यह तीन वृर्तियां मिलकर के आनंदमय कोष कहिए
इष्ट पदार्थ के इच्छा जन्य आनंद को प्रिय वृर्ती कहते हैं इष्ट पदार्थ के प्राप्ति जन्य आनंद को मोद वृर्ती कहते हैं इष्ट पदार्थ के भोग जन्य आनंद को प्रमोद वृर्ती कहते हैं इति पंचकोश विवेक निर्णय समाप्त।
अतःतीन अवस्था निर्णय
जाग्रत अवस्था स्वप्न अवस्था सुषुप्ति अवस्था।
जाग्रत अवस्था निर्णय
इंद्रिय जन्य ज्ञान ज्ञान जन्य संस्कार ताके आधार काल का नाम जाग्रत अवस्था है अथवा जिसमें ईश्वर रचित त्रिपुटी बरतें ताकू नाम जागृत अवस्था कहिए इस जागृत अवस्था का नेत्र स्थान विश्वजीव अभिमानी अकार मात्रा वेखरी वाणी क्रियाशक्ति स्थूल भोग ब्रह्म देवता रजोगुण कहिए।
ज्ञान इंद्रियों की त्रिपुटी
अध्यात्मा अद्भुत अदिदेव
श्रोत्र शब्द दिशा
त्वचा स्पर्श वायु
चक्षु रूप सूर्य
रचना रस वरुण
घ्राण गन्ध अश्विनीकुमार
कर्म इंद्रियों की त्रिपुटी
अध्यात्म अधिभूत अधिदेव
वाक वचन अग्नि
पाणी लेन देन इन्द्र
पाद हिलना डुलना उपेन्द्र
उपस्थ रति क्रिया प्रजापति
गुदा मलत्याग यम
अंत इंद्रिय की त्रिपुटी
अध्यात्मा अधिभूत अधिदेव
मन संकल्प_विकल्प चंद्रमा
बुद्धि निश्चय ब्रह्मा
चित चिन्तन वासुदेव
अहंकार अह्मपना शिवदेवा
जीव रचित त्रिपुटी।
स्वप्न अवस्था निर्णय
अंतः करण के अपरोक्ष ज्ञान के आधार काल का नाम स्वप्न अवस्था कहिए तथा जिसमें जीव रचित त्रिपुटी वरते ताको नाम स्वपन अवस्था है इस स्वप्न अवस्था का कंठ स्थान तेजस जीव अभिमानी उकार मात्रा मध्यमा वाणी ज्ञान शक्ति सूक्ष्म भोग सतोगुण कहिए।
सुषुप्ति अवस्था निर्णय
अविद्या के सुख-दुख गोचर अज्ञान के आधार काल का नाम सुषुप्ति अवस्था है इस सुषुप्ति अवस्था का हृदय स्थान प्राज्ञ जीव अभिमानी मकान मात्रा पचंती वाणी द्रव्य शक्ति आनंद भोग तमोगुण कहिए।
जीव के देश, काल, वस्तु, धर्म
जीव के देश:- जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति।
जीव की वस्तु:- स्थूल, सूक्ष्म, कारण।
जीव के धर्म:- अल्प शक्ति पना, अल्पज्ञ पना, परीछिनपना, नानापना, पराधीन पना, असमर्थ पना, अपरोक्ष पना, अविद्या उपाधिवान पना। atma bodha
जीव का वाच्य स्वरूप
अविध्या तथा अंतःकरण में पड़ा जो आत्मा का प्रतिबिंब तहां 1 अविद्या, 2 कुटस्थ आत्मा, 3 प्रतिबिंब, तीनों मिलकर के कर्ता भोक्ता संसारी जीव का वाच्य स्वरूप कहिए।
जीव का लक्ष्य स्वरूप
अकरता अभोक्ता असंसारी तीन शरीर पंचकोश तीन अवस्था तथा जीव के वाच्य स्वरूप का प्रकाशक साक्षी सच्चिदानंद मात्र कुटस्थ आत्मा को तुरिया भी कहते हैं सो जीव का लक्ष्य स्वरूप कहिए।
इति जीव विवेक समाप्त।
अतःईश्वर विवेक।
ईश्वर के तीन शरीर पंचकोश तीन अवस्था देश, काल, वस्तु, धर्म, वाच्य स्वरूप तथा लक्ष्य स्वरूप और जीव ईश्वर की एकता।
ईश्वर के तीन शरीर:- विराट शरीर, हिरण्यगर्भ शरीर, अव्याकृत शरीर।
तिन में विराट शरीर निर्णय
भिन्न-भिन्न सर्व जीवो का स्थूल शरीर मिल करके ईश्वर का विराट शरीर कहिए।
हिरण्यगर्भ शरीर निर्णय
भिन्न-भिन्न सर्व जीवो का लिंग (सूक्ष्म) शरीर मिल करके ईश्वर का हिरण्यगर्भ शरीर कहिए।
अव्याकृत शरीर निर्णय
भिन्न-भिन्न सर्व जीवो का कारण शरीर मिलकर के ईश्वर का अव्यक्त शरीर कहिए।
इति ईश्वर तीन शरीर विवेक समाप्त।
ईश्वर के पंचकोश निर्णय
अनमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय
अनमय कोष निर्णय
ईश्वर के विराट शरीर को ही ईश्वर का अनमय कोष कहिए।
प्राणमय कोष निर्णय
समष्टि प्राण ईश्वर का प्राणमय कोष कहिए।
मनोमय कोष निर्णय
समष्टि मन अथवा मन सहित पंच कर्मइंद्रियों के देवताओं को ईश्वर का मनोमय कोष कहिए।
विज्ञानमय कोष निर्णय
समष्टि बुद्धि अथवा बुद्धि सहित पंच ज्ञानइंद्रियों के देवताओं को ईश्वर का विज्ञान में कोष कहिए।
आनंदमय कोश निर्णय
समष्टि सुषोपति गत आनंद अथवा प्रलयगत आनंद को ईश्वर का आनंदमय कोश कहिए।
ईश्वर की तीन अवस्था विवेक
1 उत्पति अवस्था 2 प्रलय अवस्था 3 स्थिति अवस्था।
उत्पति अवस्था का निर्णय
सर्व जीवो की जागृत अवस्था मिलकर के ईश्वर की उत्पत्ति अवस्था कहिए और सर्व जागृत अवस्था के अभिमानी विश्व जीव मिलकर के उत्पति अवस्था का अभिमानी वैश्वानर ब्रह्मा कहिए।
स्थिति अवस्था का निर्णय
सर्व जीवो की स्वप्न अवस्था मिलकर के ईश्वर की स्थिति अवस्था कहिए और सर्व स्वपन अवस्था के अभिमानी सूत्रात्मा विष्णु कहिए।
प्रलय अवस्था निर्णय
सर्व जीवो की सुषुप्ती अवस्था मिलकर के ईश्वर की प्रलय अवस्था कहिए और सर्व सुषुप्ति अवस्था के अभिमानी प्राज्ञ जीव मिलकर इस सुषुप्ति अवस्था का अभिमानी अंतर्यामी शिव नामक कहिए। atma bodha
ईश्वर के देश, काल, वस्तु, धर्म।
ईश्वर का देश:- शुद्ध, सतोगुणी माया
ईश्वर का काल:- उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय
ईश्वर की वस्तु:- सतोगुण रजोगुण तमोगुण
ईश्वर के धर्म:- सर्वशक्ति पना, सर्वज्ञ पना, व्यापक पना, एक पना, स्वाधीन पना, समर्थ पना, परोक्ष पना, माया उपाधिवान पना।
ईश्वर का वाच्य स्वरूप
शुद्ध सतोगुनी माया में पड़ा जो ब्रह्म का प्रतिबिंब सो माया, ब्रह्म, और प्रतिबिंब तीनों मिलकर ईश्वर का वाच्य स्वरूप कहिए।
ईश्वर का लक्ष्य स्वरूप निर्णय
जीव की उपाधि अविधा तथा अविद्या के कार्य का त्याग करने ते ईश्वर की उपाधि माया तथा माया के कार्य का त्याग होयकर कुटस्थ जीव का लक्ष्य ब्रह्म ईश्वर का लक्ष्य इन दोनों का घटाकाश महाकाश कि नाई एक पने का निश्चय होयकर के सर्व दुखन की निवृत्ति परम आनंद की प्राप्ति रूप मोक्ष इस वर्तमान का लक्ष्य में ही प्राप्त होवे है। atma bodha प्पोोप
ब्रह्म पाटी
काम की उत्पत्ति से मेरी उत्पत्ति नहीं काम के नाच से मेरा नाच नहीं याते यह काम असत रूप है मैं आत्मा सत रूप हूं।
काम अपने आप को नहीं जानता मैं अपने आपको जानता हूं काम को जानता हूं याते मैं आत्मा चेतन्य रूप हूं।
इस काम की उत्पत्ति से सर्व प्रकार के दुख होते हैं याते यह काम दुख रूप है अपने आप को जानने से सर्व प्रकार के सुख होते हैं याते मैं आत्मा सुख रूप हूं।
यह काम असत जड़ दुख रूप आकाश तत्व का है मैं सत चित आनंद रूप आत्मा इस काम को जानने वाला काम से न्यारा हूं जैसे घट के जानने वाला काम से न्यारा हूं जैसे घट के जानने वाला घट से न्यारा है। atma bodha
इति जीव ईश्वर विवेक समाप्त।।
मै उम्मीद करता हूं कि यह जिज्ञासु बोध आपको जरूर पसंद आया होगा ऐसी ही ज्ञान वर्धक जानकारी के लिए आप हमारी साइट विजिट कर सकते है दोस्तों यह जानकारी अगर आप पूरी तरह से समझ लेते हो तो आप कोई भी शास्त्र का ज्ञान समझने के लिए यह एक master key है ऐसा मै इसलिए कह रहा हूं कि यह मैने अपने आप में अनुभव किया है। atma bodha
Waw
Very very nice lin
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