Sankadik Rishi Ki Katha In Hindi Must Read

Sankadik Rishi Ki Katha In Hindi

सनकादि कुमार 

अनेक जन्मों के किए हुए पुण्य से जब जीव के सौभाग्य का उदय होता है और वह सत्पुरुष का संग प्राप्त करता है तब अज्ञान के मुख्य कारण रूप मोह एवं मद के अंधकार को नाश करके उसके चित में विवेक के प्रकाश का उदय होता है। Sankadik Rishi Ki Katha In Hindi

सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा जी ने जैसे ही रचना का प्रारंभ करना चाहा उनके संकल्प करते ही उनसे चार कुमार उत्पन्न हुए सनक सनंदन सनातन एवं सनत्कुमार ब्रह्मा जी ने सहस्त्र दिव्य वर्षों तक तप करके हृदय में भगवान शेषशायी का दर्शन पाया थाा। भगवान ने ब्रह्मा जी को भागवत का मूल ज्ञान दिया था इसके पश्चात ही ब्रह्मा जी मानसिक सृष्टि में लगे थे ब्रह्मा जी का चित अत्यंत पवित्र एवं भगवान में लगा हुआ था उस समय सृष्टिकर्ता के अंतः करण में शुद्ध सत्वगुण ही था फलतः उस समय जो चारों कुमार प्रकट हुए वे शुद्ध सत्वगुण के स्वरूप हुए उनमें रजोगुण तमोगुण था ही नहीं। न तो उनमें प्रमाद निंद्रा आलस्य आदि थे और न सृष्टि के कार्य में उनकी प्रवृत्ति थी। Sankadik Rishi Ki Katha In Hindi

ब्रह्मा जी ने उन्हें सृष्टि करने को कहा तो उन्होंने सृष्टिकर्ता की यह आज्ञा स्वीकार नहीं की विश्व में ज्ञान की परंपरा को बनाए रखने के लिए स्वयं भगवान ने ही इन चारों कुमारो के रूप में अवतार धारण किया था। कुमारोंकी जन्मजात रुचि भगवान के नाम तथा गुण का कीर्तन करने भगवान की लीलाओं का वर्णन करने के एवं उन पावन लीलाओं को सुनने में थी। भगवान को छोड़कर एक क्षण के लिए भी उनका चित संसार के किसी विषय की ओर जाता ही नहीं। ऐसे सहज स्वभावसिद्ध विरक्त भला कैसे सृष्टि कार्य में कब लग सकते थे? Sankadik Rishi Ki Katha In Hindi

 
उनके मुख से निरंतर हरि शरणम यह मंगलमय मंत्र निकलता रहता है वाणी इसके जप से कभी विराम लेती ही नहीं। चित सदा श्रीहरि में लगा रहता है। इसका फल है कि चारों कुमारों पर कालका कभी कोई प्रभाव नहीं पड़ता वे सदा 5 वर्ष की अवस्था के ही बने रहते हैं। भूख प्यास सर्दी गर्मी निंद्रा आलस्य कोई भी मायाका विकार उनको स्पर्श तक नहीं कर पाता। वैसे तो कुमारोंका अधिक निवासधाम जनलोक है। जहां विरक्त मुक्त भगवद भक्त तपस्वीजन ही निवास करते हैं। उस लोक में सभी नित्य मुक्त है। Sankadik Rishi Ki Katha In Hindi

परंतु वहां सब के सब भगवान के दिव्य गुण एवं मंगलमय चरित्र सुनने के लिए सदा उत्कंठित रहते हैं। वहां सदा सर्वदा अखंड सत्संग चलता ही रहता है। किसी को भी वक्ता बनाकर वहां के शेष लोग बड़ी श्रद्धा से उसकी सेवा करके नम्रता पूर्वक उसे भगवान का दिव्य चरित्र सुनते ही रहते हैं। परंतु सनकादिक कुमारो का तो जीवन ही सत्संग है वह तो सत्संग के बिना एक क्षण रह नहीं सकते मुख से भगवनाम का जप हृदय में भगवान का ध्यान बुद्धि में व्यापक भगवतत्व की स्थिति और श्रवनोंमें भगवदगुणानुवाद बस यही उनकी सर्वदा की दिनचर्या है।

चारों कुमारों की गति सभी लोकों में अबाध है। वे नित्य पंचवर्षीय दिगंबर कुमार इच्छा अनुसार विचरण करते रहते हैं। पाताल में भगवान शेष के समीप और कैलाश पर भगवान शंकर के समीप वे बहुत अधिक रहते हैं। भगवान शेष एवं शंकरजी के मुखसे भगवान के गुण एवं चरित्र सुनते रहनेमें उनकी कभी तृप्ति ही नहीं होती। जनलोक में अपने में से ही किसी को वक्ता बनाकर भी वे श्रवण करते हैं। कभी कभी किसी परम अधिकारी भगवद भक्त पर कृपा करने के लिए वे पृथ्वी पर भी पधारते है। महाराज पृथु को उन्होंने ही तत्व ज्ञान का उपदेश किया देवर्षि नारद जी ने भी कुमारों से श्रीमद्भागवतका श्रवण किया। Sankadik Rishi Ki Katha In Hindi

अन्य भी अनेक महाभाग कुमारों के दर्शन से एवं उनके उपदेशामृत से कृतार्थ हुए हैं। भगवान विष्णु के द्वार रक्षक जय विजय कुमारों का अपमान करने के कारण वैकुंठ से भी च्यूत हुए और 3 जन्मों तक उन्हें आसुरी योनि मिलती रही। सत्संगति मुद मंगल मूला। सोई फल सिद्धि सब साधन फूला।। सनकादि चारों कुमार भक्तिमार्ग के मुखियाचार्य है सत्संग के मुख्य आराधक है श्रवण में उनकी गाढ़तम निष्ठा है। ज्ञान वैराग्य नाम जप एवं भगवचरित्र सुनने की अबाध उत्कंठाका आदर्श ही उनका स्वरूप है। Sankadik Rishi Ki Katha In Hindi

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