मंगलगिरी जी की कुंडलियां छंद टॉप 20 भक्ति रचनाएं

मंगलगिरी जी की कुंडलियां

आइए दोस्तों जानते हैं मंगलगिरी महाराज की कुंडलियां इन्होंने अपने भक्ति भाव को कुंडलिक सरल भाषा में लिपिबद्ध किया है जो की बहुत ही सराहनीय है वैसे संत तो होते ही परोपकारी है।

कुंडलिया लिख मेलियो मंगल लिजे वाच। 
मिथ्या माया जगत हैं सत आतम् है साच।।
सत आतम है साच सभी में समर्थ साईं।
पिंड ब्रह्मांड इक सार घटो घट व्यापक साईं।।
नाम रूप सब कुड़ है कहता मंगलदास। 
कुंडलीया लिख मेलियो मंगल लिजे वाच।। 

दया करी गुरुदेव जी मारियो शब्द को बाण।
कर्म अशुभ सब टूट गया अब के पड़ी पिछाण।।
अब के पड़ी पिछान कल्पना मिट गई सारी।
सुखसागर के माय झूल रही सुरता नारी।।
मंगलगिरी यू कहत है घट में उगा भाण।
दया करी गुरुदेव जी मारियो शब्द को बाण।।

पारस सतगुरु परसता लोहा कंचन होय।
सौ सोनारो परख्यो खोटा कह्यो न कोय।।
खोटा कह्यो ना कोय रत्ती भर लेश नहीं कांई।
अग्नि जैसो रूप सोलवों सोनो माइं।।
मंगलगिरी यू कहत है गुण सतगुरु का जोय।
पारस सतगुरु पारसता लोहा कंचन होय।। 

मंगलगिरी जी की कुंडलियां

मंगल इस संसार में कोई अपना मीत।
मित्र सतगुरु जगत बीच करो सदाई प्रीत।।
करो सदाई प्रीत मेटे सभी झंझाला।
हो निर्भय गुण गाय रात दिन रट लो माला।।
सतगुरु दीनदयाल है आदि बतावे रीत।
मंगल इस संसार में कोई न अपना मित।।

सतगुरु की सेवा करें रहे गुरु का दास।
उन भायो का होवसी अमरापुर में वास।।
अमरापुर में वास कूड नहीं कहूं मै तो।
सारा मानो साच अखे घर पावे वे तो।।
मंगलगिरी यूं कहत है मिट गई जिनकी त्रास।
सतगुरु की सेवा करें रहे गुरु का दास।।

सुनजो जो सतगुरु सिर धनी तुम लग मेरी दौड़।

शरणैआया तार जो निवण करूं कर जोड़।।

निवण करूं कर जोड़ आसरो लीनो तेरो।

अमृतदृष्टि निहार भलो हो जासी मारो।।

मंगलगिरी यू कहत है तुम हो बंदीछोड़।

सुनो जो सतगुरु सिर धनी तुम लग मेरी दौड़।।

संगत कीजै साधु की क्या नुगरों से काम।
नुगरा ले जावे नर्क में साधु मिलावे राम।।
साधु मिलावे राम नारगी मासुं काढे।
दे अपना उपदेश ज्ञान की जाहाजा चाढ़े।।
मंगलगिरी युं कहत है अमर बसावे धाम।
संगत कीजो साधु की क्या नुगरो से काम।।

मंगलगिरी जी की कुंडलियां

साधु जिसको जानिए काम क्रोध नहीं पास।
किन से झगड़ा नहीं करें सबसे रहत उदास।।
सबसे रहत उदास साच ले रहत अचाई।
देखें अपना रूप भ्रम उर व्यापे नाई।।
मंगलगिरी यू कहत जिन पद पाया खास।
साधु जिसको जानिए काम क्रोध नहीं पास।।

खोज करे सो खोजिया सीखे गावे साध।
ब्रह्म चिन्हे सो सतगुरु उनका मता अगाध।।
उनका मता अगाध भ्रम सब दिया उड़ाई।
लखिया अपना रूप सर्व इक व्यापक साईं।।
मंगलगीरी यूं कहत है जिनका मिटिया वाद।
खोज करे सो खोजीया सीखे गावे साध।।

साधु मेरा सिर धनी में सुनो हमारी बात।
माया जाने स्वप्नवत कौड़ी चले न साथ।।
कौडी चले न साथ झूठ में भाखु नाहीं।
करोड़ों रुपया माल मता सब रहसी यांही।।
मंगलगिरी यूं कहत है ना कोई बंधू भ्रात।
साधु मेरा सिर धनी सुनो हमारी बात।।

दिन पिछलो अब आवियो साधो सुन लो बात।
शब्द भोलाउ ले चलो सामी आवे रात।।
सामी आवे रात अंधारे गोता खावो।
मार्ग लादे नहीं किन पंत आगल जावो।।
मंगलगिरी यू कहत हैं लेलो गुरु का हाथ।
दिन पिछलो अब आवियो साधो सुन लो बात।।

मंगलगिरी जी की कुंडलियां

दिन पिछलो अब आवियों सुकरत करले वीर।
बहतो हाथ खंखोल ले सुख सागर की तीर।।
सुखसगर की तीर संपाडो कर ले चोखो।
अवसर बीतो जाय मिले नहीं एसो मोखो।।
मंगल गिरी यूं कहत है बहत निरमल नीर।
दिन पिछलो अब आवियों सुकरत करले वीर।।

दिन पिछलो आवीयो चेत सके तो चेत।
पीछे हो पछतावसी इक दिन मिलनों रेत।।
इक दिन मिलनों रेत कमाई करले आछी।
मिनख जन्म की मौज फेर मिले नहीं पाछी।।
मंगल गिरी यूं कहत है बांधों गुरू से हेत।
दिन पिछलो आवीयो चेत सके तो चेत।।

और ज्ञान सब ज्ञानडी ब्रह्मज्ञान सब खास।
जिनके उर में प्रकटीया तिनकी मीटी उदास।।
तिनकी मिट्टी उदास वास सुखसागर माही।
सदा रहे गलतान भव डर व्यापे नाही।।
मंगलगिरी यू कहत है जिनके ब्रह्म विलास।
और ज्ञान सब ज्ञानरी ब्रह्मज्ञान सत खास।।

निर्गुण भक्ति निर्मली और भक्ति है झूठ।
ब्रह्म ज्ञान सो ज्ञान है और ज्ञान सिरकुट।।
और ज्ञान सिर कूट-कूड में भाखू नाही।
पखा पखी को ज्ञान सभी सरगुन के माही।।
मंगलगिरी यू कहत है फिर देखो चहुं खुट।
निर्गुण भक्ति निर्मली और भक्ति है झूठ।।

मंगलगिरी जी की कुंडलियां

मंगल माया त्याग के लेवो हरि का नाम।
बीच में दोरों चालनों कैसे पुगो गांव।।
कैसे पुगो गांव भजन बिन भारी गेला।
जम पूछेला जवाब क्या वहां पर दोला।।
आगे वेला कांही सो साचो भज लो राम।
मंगल माया त्याग के लेवो हरि का नाम।।

मंगल माया धुड़ ज्यों मुरख लागे चित।
एक दिन चलनो एक लो रहसी माया इत।।
रेहसी माया इत कछु नहीं साथे चाले।
ऐसा मूढ़ गिंवार पकड़कर सेट्टी झाले।।
झाले सेटी पकड़कर रोवे घणोई नित।
मंगल माया धूड़ ज्यों मुरख लागे चित।।

मंगल माया त्याग के जप लो अजपा जाप।
सतगुरु के चरनां रहो कांटे त्रिगुण ताप।।
कांटे त्रीगुण ताप भव डर व्यापे नाही।
ऐसो ज्ञान विचार मूढ़ तू भरमे काहिं।।
काहिं तू भरमें मूढ़ सब घट साहिब आप।
मंगल माया त्याग के जप लो अजपा जाप।।

मंगल माया त्याग कर भजन करो भरपूर।
सुख सागर में झूलना बाजे अनहद तूर।।
बाजे अनहद तूर नाद गरणावे भारी।
बिन कर बाजे ढोल बिना पग नाचे नारी।।
नारी नाचे पग बिना सुन में उगा सूर।
मंगल माया त्याग कर भजन करो भरपूर।।

मंगल तीरथ सब किया सब ही किना धाम।
आत्म तत्व जानिया बिना ना पायो आराम।।
ना पायो विश्राम भजन बिन फिरे भटकता।
ऐसे मुक्ति न होय चौरासी जाए लटकता।।
लटकता जाए चौरासी कैसे पावों गाम।
मंगल तीर्थ सब किया सब ही कीना धाम।।

मंगलगिरी जी की कुंडलियां

मुझे उम्मीद है दोस्तों कि यह मंगल गिरी जी महाराज की कुंडलियां आपको बहुत पसंद आई होगी और आपके जानकारी में उपयोगी साबित हुई होगी ऐसी ही और जानकारी पढ़ने के लिए आप हमारे वेबसाइट को विजिट कर सकते हैं अथवा नीचे दी हुई समरी पर क्लिक कर सकते हैं धन्यवाद कबीर सागर पढ़ने के लिए मंगलगिरी की कुंडलियां

 

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