शुक्राचार्य जी की कथा । shukracharya ji ki katha

शुक्राचार्य जी की कथा

शुक्राचार्य जी का संक्षिप्त परिचय

महर्षि शुक्राचार्य जी की कथा भगवान ब्रह्मा जी के तीसरे मानसिक पुत्र भृगु हुए। इन भृगु के कवि हुए और कवि के असुर गुरु महर्षि शुक्राचार्य हुए। ये योग विद्या में पारंगत थे। इनकी शुक्रनीति बहुत प्रसिद्ध है। यद्यपि ये असुरों के गुरु थे किंतु मन से भगवान के अनन्य भक्त थे। असुरों में रहते हुए भी ये उन्हें सदा धार्मिक शिक्षा देते रहते थे। इन्हीं के प्रभाव से प्रहलाद विरोचन बलि आदि भगवदभक्त बने और श्री विष्णु के प्रीत्यर्थ बहुत से यज्ञ याग आदि करते रहे। इनके पास मृत संजीवनी विद्या थी। इससे ये संग्राम में मरे हुए असुरों को जिला लेते थे। शुक्राचार्य जी की कथा 

कच्च को संजीवनी विद्या सीखाना

बृहस्पतिजी के पास विद्या नहीं थी। इसलिए उन्होंने अपने पुत्र कचको इनके पास यह विद्या सीखने के लिए भेजा। इन्होंने उसे बृहस्पतिजी का पुत्र जानकर बड़े ही स्नेह से वह विद्या सिखायी। असुरों को जब यह बात मालूम हुई तब उन्होंने कई बार कच को जान से मार डाला किंतु शुक्राचार्य जी ने अपनी विद्या के प्रभाव से उसे फिर जीवित कर लिया। अंत में दैत्यों ने कच को मारकर उसकी राख को शुक्राचार्य जी को धोखे में सुरा के साथ पिला दिया। ऋषि ने ध्यान से देखा और कच को कहा मैं तुझे पेट में ही विद्या सिखाता हूं। मेरा पेट फाड़कर निकल आ फिर मुझे जिला लेना। कच ने ऐसा ही किया वह सिद्ध हो गया। शुक्राचार्य जी की कथा 

शुक्राचार्य जी का समस्त ब्राह्मणों को श्राप

तब से शुक्राचार्य जी ने नियम बना दिया। मैं आज से ब्राह्मणों के धर्म की यह मर्यादा बांधता हूं मेरी मर्यादा को देवता एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण जो अपने बड़ों की बात सुनना चाहते हैं वह तथा अन्य समस्त प्राणी सुने जो मंदबुद्धि ब्राह्मण भूल से भी आज से मदिरा पिएगा उसके समस्त धर्म का नाश हो जाएगा और उसे ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा तथा वह इस लोक और परलोक दोनों में निंदीत होगा। इस प्रकार शुक्राचार्य ने मर्यादा बांध दी जिसे समस्त लोगों ने स्वीकार किया।

 बली को भगवान की पहचान करवाना

बलि के यज्ञ में भगवान शुक्राचार्य ने यजमान की श्रद्धा देखने के लिए उसे बहुत मना किया कि तुम वामन रूप धारी भगवान को भूमि दान न करो किंतु बलि ने उन्हें भूमि दान कर ही दिया। शुक्राचार्य जी की कथा 

दान देने व लेने वाले के बीच में पड़ने की सजा

गंग कहे सुन लीजो गुनी अरे मंगन बीच परो मती कोई।

बीच परो तो रहो चुप हवे करी आखिर इज्जत जात है खोई।

बली के बामन के दरमियान में आन भई जो भई गति जोई।

लेत है कोई ओ देत है कोईपे शुक्र ने आंख अनाहक खोई।।


शुक्राचार्य की एक कन्या देवयानी महाराज ययाति के साथ विवाही थी। ये अबतक आकाश में एक नक्षत्र के रूप में स्थित है और वर्षा आदि की सूचना देती है। शुक्राचार्य जी की कथा 

शुक्राचार्य जी द्वारा भगवान की स्तुति

शुक्राचार्य बड़े भगवदभक्त हैं। बलि के यज्ञ में पधारे हुए भगवान से शुक्राचार्य कहते हैं भगवान मंत्र की तंत्र की (अनुष्ठान पद्धतिकी) देश काल पात्र और वस्तुकी सारी भूले आपके नाम संकीर्तनमात्रसे सुधर जाती है। आपका नाम सारी त्रुटियों को पूरी कर देता है।

मुझे उम्मीद है दोस्तों यह कथा आपको पसंद आई होगी ऐसी ही और भी पौराणिक रोचक कथाएं पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट को विजिट कर सकते हैं अथवा नीचे दी गई समरी पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं। धन्यवाद !

 

0 thoughts on “शुक्राचार्य जी की कथा । shukracharya ji ki katha”

Leave a Reply to Bhavesh Cancel Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top