भारद्वाज ऋषि की कथा । Bhardvaj rishi ki katha

भारद्वाज ऋषि की कथा

भारद्वाज ऋषि की कथा
भारद्वाज ऋषि की कथा

संक्षिप्त परिचय भारद्वाज ऋषि की कथा

देव गुरु बृहस्पति जी के भाई उतथ्यके पुत्र भरद्वाज जी श्री राम कथा श्रवण के अनन्य रसिक थे। यह ब्रह्मनिष्ट श्रोत्रीय तपस्वी और भगवान के परम भक्त थे। तीर्थराज प्रयाग में गंगा यमुना के संगम से थोड़ी ही दूर पर भरद्वाज जी का आश्रम था। सहस्त्रों ब्रह्मचारी इनसे विद्याध्ययन करने आते और बहुत से विरक्त साधक इन के समीप रहकर अपने अधिकार के अनुसार योग उपासना तत्वानुसंधान आदि पारर्मार्थिक साधन करते हुए आत्म कल्याण की प्राप्ति में लगे रहते। भारद्वाज ऋषि की कथा

दूसरी भक्ति हरि कथा प्रसंगा

भगवान के मंगलमय चरितों को सुनने से त्रीताप संतप्त प्राणी को शांति प्राप्त होती है। माया के काम क्रोध लोभ मोह आदि विकार दूर होते हैं। हृदय निर्मल होता है। इसलिए संत महापुरुष सदा भगवत्कथा कहने सुनने में ही लगे रहते हैं। श्री हरि के नित्य दिव्य गुणों में जिनका हृदय लग गया उनको फिर संसार के सभी विषय फीके लगते हैं। उन्हें वैराग्य करना या जगाना नहीं पड़ता अपने आप उनका चित सभी लौकिक भोगों से विरक्त हो जाता है। आनंदकंद प्रभु के चरित्र भी आनंद रूप ही है। उनकी सुधा मधुरिमाका स्वाद एक बार मन को लगाना चाहिये फिर तो वह अन्यत्र कहीं जाना ही नहीं चाहेगा। भारद्वाज ऋषि की कथा

भरद्वाज ऋषि कुबेर जी के नाना थे

भरद्वाज जी के दो पुत्रियां थी जिनमें एक महर्षि याज्ञवल्क्य जी को विवाही थी और दूसरी विश्रवा मुनि की पत्नी हुई जिसके पुत्र लोकपाल कुबेरजी हुए। भगवान श्रीराम में भारद्वाज जी का अनन्य अनुराग था। जब श्रीराम वन जाने लगे तब मुनि के आश्रम में प्रयागराज में उन्होंने एक रात्रि निवास किया। मुनि ने भगवान से उस समय अपने हृदय की निश्चित धारणा बतायी थी। भारद्वाज ऋषि की कथा

अयोध्या नगरी का अद्भुत आतिथ्य

जब श्री भरत लाल जी प्रभु को लौटाने के उद्देश्य से चित्रकूट जा रहे थे तब वे भी एक रात्रि मुनि के आश्रम में रहे थे। अपने तपोबल से सिद्धियों के प्रभाव से मुनि ने अयोध्या के पूरे समाज का ऐसा अद्भुत आतिथ्य किया कि सब लोग चकित रह गये। जो भगवान के सच्चे भक्त हैं उन्हें भगवान के भक्त भगवान से भी अधिक प्रिय लगते हैं। किसी भगवदभक्त का मिलन उन्हें प्रभु के मिलन से भी अधिक सुखदाई होता है। भारद्वाज जी को भरत जी से मिलकर ऐसा ही असीम आनंद हुआ। उन्होंने कहा भी जब श्री रघुनाथ जी लंका विजय करके लौटे तब भी वे पुष्पक विमान से उतरकर प्रयाग में भारद्वाज जी के पास गये। श्रीराम के साकेत पधारने पर भारद्वाज जी उनके भुवन सुंदर रूप के ध्यान तथा उनके गुणों के चिंतन में ही लगे रहते थे। माघ महीने में प्रति वर्ष ही प्रयागराज में ऋषि मुनिगण मकरस्नान के लिए एकत्र होते थे। एक बार जब माघभर रहकर सब मुनिगण जाने लगे तब बड़ी श्रद्धा से प्रार्थना करके भारद्वाज ने महर्षि याज्ञवल्क्य को रोक लिया और उनसे श्री राम कथा सुनाने की प्रार्थना की। याज्ञवल्क्य जी ने प्रसन्न होकर श्री राम चरित्र का वर्णन किया। इस प्रकार भारद्वाज जी की कृपा से लोक में श्री रामचरित का मंगल प्रवाह प्रवाहित हुआ। भारद्वाज ऋषि की कथा

उपसंहार

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