गुरु बिन घोर अंधेरा भजन lyrics
गुरु बिन माला फेरते गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन दोनों निष्फल है पूछो वेद पुराण।।
राम कृष्ण से कौन बड़े उन्हों भी गुरु किन।
तीन लोक के वे धणी गुरु आगे आधीन।।
गुरु बिन घोर अंधेरा संतो
बिना दीपक मंदिरियो सुनो नही वस्तु का वेरा जी।।टेर।।
(1) जब तक कन्या रेहवे कुंवारी नहीं पुरुष का वेरा जी।
आठों पहर आलस में खेले खेले खेल घणेरा जी।।
(2) मृगा की नाभि बसे कस्तूरी नहीं मृग को वेरा जी।
रनी बनी में फिरे भटकतो सूँघे घास घनेरा जी।।
(3) जब तक अग्नि रेहवे पत्थर में नही पत्थर को वेरा जी।
चकमक चोंटा लगे पत्थर की फेंके आग चोपेरा जी।।
(4) रामानंद मिलिया गुरु पूरा दिया शब्द तकसारा जी।
कहत कबीर सुनो भाई साधो मिट गया भरम अंधेरा जी।।
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यह भजन कबीर परमेश्वर द्वारा रचित गुरु महिमा पर आधारित है व्यक्ति के जीवन में गुरु बिन घोर अंधेरा भजन lyrics है इस विषय को विस्तार से समझाया गया है इस भजन के माध्यम से मित्रों भजन पसंद आए तो कृपया लाइक करें सुझाव के लिए कमेंट करें अपनी राय जरूर रखें और ऐसे और भी बहुत सारे भजन कथा कहानियां छंद दोहे सवैये आदि पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं धन्यवाद। गुरु बिन घोर अंधेरा भजन lyrics
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