मन रे ऐसा सतगुरू जोही lyrics
(सन्त श्री कबीर जी की वाणी )
मन रे ऐसा सतगुरू जोही ।
भक्ति जोग और ज्ञान वैरागा, शीलवान निर्मोही ॥ टेर ॥
पर उपकार सदा हितकारी, जग में निकलीया वेही ।
दे उपदेश दया के दाता, जन्म-मरण दुःख धोही ॥ 1॥
परनिन्दा स्तुती तज कर, हर्ष- शोक ना होही ।
समदृष्टि सारा पर राखे, क्या मित्र क्या द्रोही ॥ 2 ॥
मन रे ऐसा सतगुरू जोही lyrics
देह अभिमान भेख री बड़प्पन, रंज मात्र ना होही ।
दीनदयाल दया के सागर, ज्ञान गुरा से होही ॥ 3 ॥
कहे कबीर साहब सन्त कोई बिरला, मिले जग रे मांही।
पारस भवर चन्दन सत्संग, निर्णय करले वोही ॥ 4 ॥
मन रे ऐसा सतगुरू जोही lyrics
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