बुद्धिमान बंजारा प्रेरक कहानी
एक बनजारा था। वह बैलोंपर मेट (मुल्तानी मिट्टी) लादकर दिल्लीकी तरफ आ रहा था। रास्तेमें कई गाँवोंसे गुजरते समय उसकी बहुत-सी मेट बिक गयी। बैलोंकी पीठपर लदे बोरे आधे तो खाली हो गये और आधे भरे रह गये। अब वे बैलोंकी पीठपर टिकें कैसे? क्योंकि भार एक तरफ हो गया! नौकरोंने पूछा कि क्या करें? बनजारा बोला—’अरे! सोचते क्या हो, बोरोंके एक तरफ रेत (बालू) भर लो। यह राजस्थानकी जमीन है, यहाँ रेत बहुत है।’ नौकरोंने वैसा ही किया। बैलोंकी पीठपर एक तरफ आधे बोरेमें मेट हो गयी और दूसरी तरफ आधे बोरेमें रेत हो गयी।बुद्धिमान बंजारा प्रेरक कहानी
दिल्लीसे एक सज्जन उधर आ रहे थे। उन्होंने बैलोंपर लदे बोरोंमेंसे एक तरफ झरते हुए देखी तो वे बोले कि बोरोंमें एक तरफ रेत क्यों भरी है? नौकरोंने कहा- ‘सन्तुलन करनेके लिये।’ वे सज्जन बोले-‘अरे! यह तुम क्या मूर्खता करते हो? तुम्हारा मालिक और तुम एक-से ही हो । बैलोंपर मुफ्तमें ही भार ढोकर उनको मार रहे हो! मेटके आधे-आधे दो बोरोंको एक ही जगह बाँध दो तो कम-से-कम आधे बैल तो बिना भारके खुले चलेंगे।’ नौकरोंने कहा कि आपकी बात तो ठीक जँचती है, पर हम वही करेंगे, जो हमारा मालिक कहेगा। आप जाकर हमारे मालिकसे यह बात कहो और उनसे हमें हुक्म दिलवाओ। वह मालिक (बनजारे)-से मिला और उससे बात कही। बनजारेने पूछा कि आप कहाँके हैं ? कहाँ जा रहे हैं? उसने कहा कि मैं भिवानीका रहनेवाला हूँ। रुपये कमानेके लिये दिल्ली गया था। कुछ दिन वहाँ रहा, फिर बीमार हो गया। जो थोड़े रुपये कमाये थे, वे खर्च हो गये। व्यापारमें बुद्धिमान बंजारा प्रेरक कहानी
घाटा लग गया। पासमें कुछ रहा नहीं तो विचार किया कि घर चलना चाहिये। उसकी बात सुनकर बनजारा नौकरोंसे बोला कि इनकी सम्मति मत लो। अपने जैसे चलते हैं, वैसे ही चलो। इनकी बुद्धि तो अच्छी दीखती है, पर उसका नतीजा ठीक नहीं निकलता। अगर ठीक निकलता तो ये धनवान् हो जाते। हमारी बुद्धि भले ही ठीक न दीखे, पर उसका नतीजा ठीक होता है। मैंने कभी अपने काममें घाटा नहीं खाया। बनजारा अपने बैलोंको लेकर दिल्ली पहुँचा। वहाँ उसने जमीन खरीदकर मेट और रेत दोनोंका अलग-अलग ढेर लगा दिया और नौकरोंसे कहा कि बैलोंको जंगलमें ले जाओ और जहाँ चारा-पानी हो, वहाँ उनको रखो। यहाँ उनको चारा खिलायेंगे तो नफा कैसे कमायेंगे? मेट बिकनी शुरू हो गयी। उधर दिल्लीका बादशाह बीमार हो गया। वैद्यने सलाह दी कि अगर बादशाह राजस्थानके धोरे (रेतके टीले)-पर रहें तो उनका शरीर ठीक हो सकता है। रेतमें शरीरको नीरोग करनेकी शक्ति होती है। अतः बादशाहको राजस्थान भेजो।
‘राजस्थान क्यों भेजें? वहाँकी रेत यहीं मँगा लो!’ ‘ठीक बात है। रेत लानेके लिये ऊँटको भेजो।’ ‘ऊँट क्यों भेजें? यहीं बाजारमें रेत मिल जायगी।’
‘बाजारमें कैसे मिल जायगी ?’
‘अरे! दिल्लीका बाजार है, यहाँ सब कुछ मिलता है। मैंने एक जगह रेतका ढेर लगा हुआ देखा है।’ ‘अच्छा! तो फिर जल्दी रेत मँगवा लो।’
बादशाहके आदमी बनजारेके पास गये और उससे पूछा कि रेत क्या भाव है? बनजारा बोला कि चाहे मेट खरीदो, चाहे रेत खरीदो, एक ही भाव है। दोनों बैलोंपर बराबर तुलकर आये हैं। बादशाहके आदमियोंने वह सारी रेत खरीद ली। अगर बनजारा दिल्लीसे आये उस सज्जनकी बात मानता तो ये मुफ्तके रुपये कैसे मिलते? इससे सिद्ध हुआ कि बनजारेकी बुद्धि ठीक काम करती थी। बुद्धिमान बंजारा प्रेरक कहानी
इस कहानीसे यह शिक्षा लेनी चाहिये कि जिन्होंने अपनी वास्तविक उन्नति कर ली है, जिनका विवेक विकसित हो चुका है, जिनको तत्त्वका अनुभव हो चुका है, जिन्होंने अपने दुःख, सन्ताप, अशान्ति आदिको मिटा दिया है, ऐसे सन्त- महात्माओंकी बात मान लेनी चाहिये; क्योंकि उनकी बुद्धिका नतीजा अच्छा हुआ है। जैसे, किसीने व्यापारमें बहुत धन कमाया हो तो वह जैसा कहे, वैसा ही हम करेंगे तो हमें भी लाभ होगा। उनको लाभ हुआ है तो हमें लाभ क्यों नहीं होगा ? ऐसे ही हम सन्त-महात्माओंकी बात मानेंगे तो हमारेको भी अवश्य लाभ होगा। उनकी बात समझमें न आये तो भी मान लेनी चाहिये। हमने आजतक अपनी समझसे काम किया तो कितना लाभ लिया है? अपनी बुद्धिसे अबतक हमने कितनी उन्नति की है? बुद्धिमान बंजारा प्रेरक कहानी