राजाराम जी के दोहे
दोहा 1
हरसिंघ कहे ब्राह्मण सुणौ धरो पुत्र को नाम ।
तिल बधता जव बधें, बध कर हुआ जवान ।
बाल पणों खेलत गयो, करे मनुष्य को काम ।
पुत्र दोय प्रगट भये, हरसिंघ के घर हीर ।
कलयुग में ताको कहे, परतक सांचा पीर ।
राम लखन बलराम कृष्ण, जिण विध जोड़ी जाम ।
राजाराम जी के दोहे
दोहा 2
ठाकुर कहे धूं खावे घणो, राजू सोगरा रोज ।
मांय जायने जीम नित, भावे जीतो ही भोज ।
सौलह सोगरा सड़पीया, अजहूं न धापा आप ।
पुरसे ज्यूं वै जीमले जपने हरि रौ जाप ।
मांजी लाडी मोकली, अरज करी उणबार ।
आप सिद्ध अवतार हो, दिठौ चमत्कार ।
रिजगो पावत रावलो, उबा खौडा मांय ।
आई आवाज आकाश सूं, जावौ द्वारका तंय ।
देव भारती दाखवां, सर्व गुणां सीरताज ।
राजाराम महाराज के, अखे गुरू जग आज ।
राजाराम जी के दोहे
दोहा 3
कीड़ो के घन कुन्ड में, देवे जीव को डार ।
उपर सिर कागा उड़े, उड़दे चोंच अपार ।
सिसो गाप पावे सबे, लागे मेक ललाड़ ।
पकड़ टांग बहु फेर कर, पत्थर देत पछाड़ ।
दुखि जीवां ने देख हद, दया भई दिल दाज ।
धरम राज के धाम पर, मिलण गये मुनिराज ।
चल्यौ विवान आगे चपल, एक पलक उणबार ।
इन्द्रादिक आये मिलन, ले परियन को लार ।
राग करी रंभा गजब, नीपट कियौ हद नाच ।
फुलन की वर्षा करी, सब देव गंधर्व साथ ।
गुरू आज्ञा ले आगे गये, पल में शिव के पास ।
करी स्तुति कोड कर, खुशि हुए हर खास ।
ले वरदान आशीष ले, गये जो गोविन्द द्वार ।
भगत देख प्रसन्न भये, परसे बांह पसार ।
सूरदास तुलसी ससी, ध्रुव प्रहलाद धाय ।
मुनिवर सु सब आय मिले, भगवत हेतु मुनिराज ।
पांचव पांडव द्रौपदी, भूप हरिचन्द्र भाज।
शिवरी करमां साथ, मीरो मेलागर दमयती ।
भूप मोर ध्वज भ्रात, मिले आय मुनिराज से ।
राजाराम जी के दोहे
दोहा 4
अमरापुर की देख छबी, प्रसन्न भये रूसि राज ।
सब देवन के बीच श्याम लख, करी डंडोवत काज ।
श्याम कहे राजू सुणौ, साचे दिल सु बात ।
भगती थारी भालने, हुयौ खुशी हूं तात ।
भावे जिम भोजन करो, अमरापुर में आज ।
सब देवन के साथ में, भोज करो महाराज ।
राजाराम जी के दोहे
दोहा 5
दुजो वर तुम मांगलो, और वर मिलसी नाय ।
पुरव जन्म के सराप से, रहो मृत लोक के मांय ।
मैं जावत हूं द्वारका, दर्शन करवा काज ।
अब मैं यह चाहत हूँ, मनसा पूरो आज ।
मैं जाऊ मृत लोक में, पाछो फिर अबार ।
जो फल होवे द्वारका, वो फल मेरे द्वार ।
लागत छाप द्वारका मोई, उघड़ जाय सर माटी मांही ।
तहां देखै लोग हजारों आई, यो वर दीजिये यादव मोही ।
राजाराम जी के दोहे
दोहा 6
हुकूम दियो राजू हमें, जावो अपने धाम ।
पुजेला नर नार सब, सारो आछा काम ।
वाचा सिद्ध गुरू मंत्र जपो, करो कर्म सुध जान ।
राजू चारू खूंट मं, महिपत राखो मान ।
दे आशीष वरदान दे, भेज दिया निज द्वार ।
तो घट में मो घट सदा, दो युग रेसी दार ।
च्यार खूंअ नव खण्ड में, परचा थारा पूर ।
देश देश रा जातरू, नित-नित आसी नूर ।
राजाराम जी के दोहे
दोहा 7
रोटी न मेले रावले, और न लाया लोग ।
सब लोग छू छू करे, देखां इणरो जोग ।
अन्न पाणी आगो कियो, अखंड लगायो ध्यान ।
राममंत्र एक लाख जपिया, वाचा सिद्ध प्रमाण ।
देवलोक सूं देवता, आवे रात गयाह ।
विध विध भोजन मोकला, लावे थाल लिया ।
राजाराम जी के दोहे
दोहा 8
कांकड़ में कुटिया करी, मन सूं झेली मून ।
मणिया फेरे माटी तणा, सबसूं राखे सून।
राजाराम जी के दोहे
दोहा 9
रात-रात में रल गयो, भर गयों सागर भाल ।
दिन उगा सब देखियौ, पहुच गयो जल पाल ।
सूको सर भरियौ सजल, पलक एक में पीर ।
प्रथम परचो परठियौ, वाह जोगेसर वीर ।
अस्सी हजार आया अठे, मानवी मेला मांय ।
करवा दर्शन कारणे, तन मन गुरू के तांय ।
पी पाणी तिरपत भये, हुयो अचम्भो हास ।
किण विध भरयो सर कहो, खाली पड़ियो ओ जोगेसर आप निज,
ईश्वर रो अवतार । मेले उभा मानवी अखी सबा उणवार ।
मरियोड़ो बकरो जीवतो हुवो
दोहा 10
राईका थाना तणां, मुवो बकरियो एक ।
हेलो बांभी ने कियो, सुणजे छगिया नेक।
गोमा दरोगो गांव रो, सगला करसां साथ
केयो बांभी ने नोकजे, राज कुटड़ी माथ
सिधाई देखों सबे, अथवा भगवां आज ।
पाखंडी बणियो परो, मुनि सिद्ध महाराज ।
जाय बांभी जठे नेकियौ, बकरो कुटड़ी पास ।
राजू देखने रूसीया, वह मरियोड़ी लास ।
पाणी मंत्र पठकियौ, पड़िये बकरे पास ।
अमृत जल सूं उठियो, मुवो बकरो खास ।
चढियो पाल तालाब री, पूगो माता पास ।
पियो दूध उण प्रेम सूं,, मिगसर चानणा मास ।
सारा गांव रा साथ में, पूजन आया धाम ।
माफ करो तकसीर अब, कियो मैं खोटो काम ।
पग गुरा रा पकड़िया, लाखां आया लोग ।
करणी धीन सारा कहै, जबरो थांरो जोग ।
दोहा 11
बिन खोदे खुदगी वह, जमीं पतालां जाय ।
कहत गांव के लोग कुल, खुद वे सोगन खाय ।
पांच मुख को सर्प वटे, रहे दिन अरू रात ।
जाय गुफा में देखखलों, तटे मौजूदा तात ।
दोहा 12
दूत जाय दिवी खबर, पातल हुंत पुकार |
शिकारपुरे सिद्ध प्रगटिया, ओ राजूराम अबार ।
लाखों लोग जावे वठे, मेलो मंडे मंझधार ]
उघड़े छापा अंग में, केशर कूं कूं अपार ।
देश-देश रा दूर सू, नर मिल आवे नित ।
खा रूपया लाडला, चढावे उजल चित ।
भीड़ लगे भारी सदा, करवा दर्शन काज ।
ठगने धन सब खायगो, अवल अफंडी आज ।
सेणा सायर पटेल सब, जबरी भोली जात ।
भरमावे जिणने भला, तुरंत धुंतारो तात ।
दोहा 13
आय हाजर हुवा उठे, राजाराम महाराज।
पातल केम पधारिया, अठे जंगल में आज ।
मेला भरे थुं मौजा करे, मंडे भीड़ अणमाप ।
भोला ने भरमाय कर, धन पधरावो आप |
दोहा 14
कर जोड़ अरज करी, प्रतापसिंह सूं पूर ।
नाथ सिद्ध मैं हूं नहीं, कहो आप सब कूर ।
गुण गाऊं गोविन्द रा, रात दिवस महाराज ।
मांडाणी पूजे मने, भीड़ लगे इण भाज।
इतरो कहता एक पल, उघड़ी छाप अनेक ।
केशर ने कुं कुं तणी, लाल पीली अनेक ।
परचा छठा बोरड़ी री पीपली
दोहा 15
उगणीसे तेहोतरे, सुद पक मास वैसाख ।
मेलो जबर मांडियौ, पूनम रो दिन पाक ।
कोरो कलश मंगाय कर, छिड़की भूमि छांट ।
सूकी लकड़ी बोर री, गाड़ी गुड़ में गांठ ।
कन्या कंवारी हाथ सूं, रूपवाई उणवार ।
बोर पलट पीपल भई, अहो धन्य अवतार ।
सारा देखी सापरता, ऐसी लीला आज ।
लोक दिखावण लाकड़ी, कीवी परचे काज ।
दोहा 16
जगी रे नहीं जनमियो, पुतर- पुतरी कोय ।
राजपुरियां सु आविया, सैं जोड़े वे दोय ।
हुकम हुयो नव मास सू, जगी पुत्र जोधार ।
वचन गुरू प्रताप सूं, हुयो पुत्र सूधवार ।
जगी इम कहे जब, सुनी नाथ गुरूराय ।
फुलवाडी वाड़ी अबे देवो आप लगाय।
दोहा 17
बायड़ आवे बापजी, नहीं तमाखू पास ।
अखो उबाई मोकली, तन में होवे त्रास ।
करूं इन्तजाम थारे तमाखू रो भायो ।
पियो बैठा खूब हुक्का गड़ गड़ायो ।
सुणताई, झट धायो एक चौधरी भायो ।
खबकाय ने बोरो एक खात रो भर लायो ।
दोहा 18
खात ढिगाल ढिगली करी, ऊपर कपड़ो डाल ।
दोय घड़ी सूं देखियो, आगो पलो राल ।
हुई तमाखू खातरी, खास मालवण जाण ।
पीने सारा पारखी, मरदा होका माण।
दोहा 19
सर भरियो साजी गांव रो, खारो उणरो नीर।
लिलो रंग सब लो, उबा सरवर तीर ।
रमता राजूरामजी, गया जु सरवर तीर ।
पाणी लिलो देखने, नर जब पीना नीर ।
दोय दोष जब देखिया, जल में जबर अपार ।
लोटा सूं जल लेयने, सर में छांटा डार ।
एक पलक में हुयग्यो, सगलो पाणी साफ।
कांच जेम पलके कहो, हुयगो खापो खाप ।
गेला छोरा गांव रा, लागा गुरू री लार ।
एक जादूगर आवियो, हाका करे हजार ।
जब छोरा साजी जायने, करी सभा में बात ।
मंतर जाणे मोकला, जोगेसर आत ।
मारे काका देखता, सर रो पाणी साफ ।
इण जोगेसर कियो अबे, छिन में खापो खाप ।
गया जु दाता गांव में पगां जु पड़िया लोग ।
परचा केई देखिया, जबरो थारो जोग ।
कलंक म्हारो काटियो, सब ही गांव तणोह ।
लिलो पाणी देखने, जलतो जणो जणोह ।
दोहा 20
उगणीसे छियतरे, परचो अनोखो पाय ।
लूण घाल जल घोलियो, ढकियो सभा रे माय ।
खारे रो मीठो हुयो, पाणी लोटा माय ।
मीसरी सू मीठो जिको, भयो अचंभे ताय ।
पाणी वो सगला पियो, जैसा अमृत जाण ।
धिन धिन भाखे है धणी, परगटिया प्रमाण ।